Superboys of Malegaon Movie Review: यहां जानते हैं कि फिल्म क्यों देखी जानी चाहिए. सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव ऐसी फिल्म है जो फिल्ममेकिंग पर ईमानदारी से बनाई गई है और फिल्ममेकिंग की कमियों पर बखूबी बात करती है.
Superboys of Malegaon Review: अक्सर आजकल लोग ये कहते हैं बॉलीवुड फिल्में इसलिए ज्यादा नहीं चल रही क्योंकि फिल्ममेकर बांद्रा और जुहू से बाहर निकलकर नहीं सोचते हैं. ये कुछ हद तक सही है लेकिन पूरी तरह से नहीं. अक्सर लीक से कुछ हटकर करने वाली जोया अख्तर और रीमा कागती इस बार नासिक के मालेगांव पहुंची हैं.
फिल्ममेकर्स पर ये इल्जाम भी लगते हैं कि वो अपनी कमियां नहीं सुनना चाहते हैं लेकिन फिल्ममेकिंग पर बनी ये ईमानदार और दिल को छू लेने वाली फिल्म फिल्ममेकिंग की कमियों पर बखूबी बात करती है. ये फिल्म 2008 में आई डॉक्यूमेंट्री सुपरमेन ऑफ मालेगांव से इंस्पायर्ड है जो नासिर शेख और दूसरे नौसिखिए फिल्ममेकर्स की जिंदगी पर बनी थी और ये फिल्म बड़े अच्छे से बता देती है कि राइटर बाप होता है.
Superboys of Malegaon Movie Review
कहानी- ये कहानी है महाराष्ट्र के नासिक के मालेगांव में रहने वाले कुछ लड़कों की जिन्हें फिल्में देखने का शौक है, लेकिन मालेगांव में फिल्में देखना मुश्किल है. पायरेटिड फिल्में मिलती हैं जिन्हें पुलिस देखने नहीं देती. ऐसे में ये लोग तय करते हैं कि अपनी खुद की फिल्में बनाएंगे. आदर्श गौरव को शशांक अरोड़ा का साथ मिलता है और फिर मिलता है इन्हें एक राइटर जिसका किरदार विनीत कुमार सिंह ने निभाया है. फिल्में बनती हैं, आपस में दोस्ती टूटती है, स्टार्स के नखरों से लेकर, फिल्मों में पैसा डालने वाले फायनेंसरों के कहने पर कहानी से कॉम्प्रोमाइज करने से लेकर फिल्ममेकिंग की तमाम कमियों पर बात करती है और एंड में आपको रुला डालती है.

कैसी है फिल्म- ये एक ऐसी फिल्म है जो फिल्में बनाने के तरीकों पर बड़े अलग अंदाज में बात करती है. कहानी भले मालेगांव की है लेकिन झलक आपको इसमें पूरे बॉलीवुड की दिखेगी. फिल्म अपनी पेस पर चलती है. कुछ को स्लो लग सकती है, कुछ को पुरानी लेकिन इस फिल्म को अगर बदला जाता तो इसकी आत्मा मर जाती. ये फिल्म आपको इमोशनल करती है, दोस्ती की कहानी दिखाती है, कैसे कामयाबी दोस्ती के रिश्ते को कमजोर करती है, ये भी दिखाती है. और एंडिंग में जो होता है वो आपको चौंकाता है, रुलाता है, इमोशनल करता है. ये अलग तरह की फिल्म है लेकिन सबके लिए है, फिल्में देखने को शौकीन हैं तो मिस मत कीजिएगा.
परफॉर्मेंस- आदर्श गौरव ने कमाल का काम किया है. वो इस कैरेक्टर में पूरी तरह से फिट हो गए हैं. उनका कैरेक्टर शेड बदलता है और ये बदलाव बड़ा स्मूद होता है. यही एक अच्छे एक्टर की निशानी है. छावा के कवि कलश विनीत कुमार सिंह के सितारे इन दिनों बुलंदी पर हैं. छावा कमाल कर रही है और विनीत के काम की जबरदस्त तारीफ हो रही है.
यहां भी ट्रेलर में ही उनका डायलॉग कमाल कर गया था कि राइटर बाप होता है और उन्होंने कमाल का काम किया है. छावा के बाद इस फिल्म का आना और उसमें विनीत का एक अलग किरदार होना. ये उनकी मेहनत और किस्मत दोनों का कमाल है. शशांक अरोड़ का काम काफी अच्छा है. उनका किरदार शुरू में खुद को अंडरप्ले करता है लेकिन एंड तक आते आते वो ऐसा कुछ कर जाते हैं कि आपकी आंखों में आंसू आ जाते हैं. अनुज सिंह दुहान का काम अच्छा है, रिद्दी कुमार का काफी इम्प्रेस करती हैं.
डायरेक्शन और राइटिंग- वरुण ग्रोवर ने फिल्म को लिखा है और साबित कर दिया है कि राइटर बाप होता है. इस फिल्म की राइटिंग काफी अच्छी है. राइटर अपने विजन पर टिका रहा ये फिल्म देखकर समझ आता है. रीमा कागती अलग तरह का सिनेमा बनाने के लिए जानी जाती हैं और यहां भी रीमा का डायरेक्शन कमाल हैं. उन्होंने राइटर को वाकई वो करने दिया है जो उसका काम है. फिल्म की पेस आपको ये बताती है, हर किरदार को कायदे से कैसे इस्तेमाल किया जाता है. बिना सुपरस्टार्स के एक दिल को छू लेने वाली फिल्म कैसे बनाई जाती है. वो इस फिल्म को देखकर समझा और सीखा जा सकता है.
कुल मिलाकर ये फिल्म जरूर देखिए
रेटिंग- 3.5 स्टार्स
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