Gensol Engineering Ltd Scam: सेबी ने अपनी जांच में ये पाया की जग्गी भाइये ने अपने इन पैसों का इस्तेमाल अपने निजी खर्चों के लिए भी किया. साल 2022 में IRDEA से लोन की एक किश्त मिलने के बाद जेनसोल ने पहले अधिकतर पैसों को गो ऑटो को ट्रांसफर किया. वो कॉर्पोरेट फर्जीवाड़ा जिसने शेयर बाजार में मचा दिया हड़कंप, रेगुलेटर सेबी ऐसा किया पर्दाफाश
Gensol Engineering Ltd Scam
Gensol Engineering Ltd Scam: शेयर बाजार की दुनिया में एक और बड़ा कॉर्पोरेट फर्जीवाड़ा सामने आया है. जेनसोल इंजीनियरिंग और इसके मालिकों पर कंपनी के पैसों में हेरफेर करने का बड़ा आरोप लगा है. मार्केट रेगुलेटर सेबी ने अपनी जांच में पाया कि कंपनी के मालिकों ने लोन के पैसों का इस्तेमाल अपने लिए फ्लैट खरीदने, महंगे सामान और यहां तक की अपनी पत्नी और मां के खातों में पैसे ट्रांसफर करने में किए हैं.
इस खबर के बाद से जेनसोल इंजीनियरिंग के शेयरों में भगदड़ मची हुई है. इधर, कोष के दुरुपयोग और संचालन में चूक के कारण बाजार नियामक सेबी की जांच के दायरे में आयी संकटग्रस्त कंपनी जेनसोल इंजीनियरिंग से उसके स्वतंत्र निदेशक अरुण मेनन ने तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देने की जानकारी दी है. कंपनी के प्रवर्तकों में से एक अनमोल सिंह जग्गी को भेजे इस्तीफे में मेनन ने लिखा कि अन्य व्यवसायों के पूंजीगत व्यय को फाइनेंस करने के लिए जीईएल के बहीखाते तथा जीईएल द्वारा इतनी ऊंची ऋण लागत पर स्थिरता बनाए रखने को लेकर चिंता बढ़ रही है.
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के धन की हेराफेरी और कामकाज संबंधी खामियों के कारण जेनसोल इंजीनियरिंग और उसके प्रवर्तकों अनमोल सिंह जग्गी तथा पुनीत सिंह जग्गी को अगले आदेश तक प्रतिभूति बाजार से प्रतिबंधित करने की पृष्ठभूमि में मेनन ने इस्तीफा दिया है. नियामक ने अनमोल और पुनीत सिंह जग्गी को अगले आदेश तक जेनसोल में निदेशक या प्रमुख प्रबंधकीय पद संभालने से भी रोक दिया था.
इसके अलावा, बाजार नियामक ने जेनसोल इंजीनियरिंग लिमिटेड (जीईएल) को उसके द्वारा घोषित शेयर विभाजन को रोकने का निर्देश भी दिया.कंपनी का शेयर अपने शिखर से करीब 90 फीसदी नीचे गिर चुका है. अभी भी करीब एक लाख छोटे निवेशक इस शेयर में फंसे हुए हैं. ये आखिर क्या पूरा मामला है, आइये जानते हैं. सेबी ने जेनसोल इंजीनियरिंग के प्रमोटर्स अनमोल सिंह जग्गी और पुनीत सिंह जग्गी को कंपनी के डायरेक्टर पद से हटा दिया है. इसके साथ ही, दोनों भाइयों को शेयर बाजार से भी बैन कर दिया है. सेबी ने कहा कि ये दोनों भाई जेनसोल इंजीनियरिंग के मैनेजमेंट टीम में भी कोई अहम पद नहीं ले सकते हैं.
262 करोड़ का गड़बड़झाला

यानी अगर 830 करोड़ रुपये में से इसे घटाएं तो करीब 262 करोड़ का हिसाब अभी नहीं मिला है. जबकि, कंपनी को लोन का पैसा मिले एक साल से भी अधिक समय मिल चुका है. सेबी को यही बात खटक रही है. जेनसोल को इलैक्ट्रिक गाड़ियां सप्लाई करने वाली कंपनी गो ऑटो ने भी पुष्टि की है कि जेनसोल ने 568 करोड़ रुपये के कुल खर्च में 4704 ईवी खरीदें हैं.
रेगुलेटर सेबी की जांच में ये सामने आया है कि जेनसोल ने इलैक्ट्रिक गाड़ियों को खरीदने के लिए गो ऑटो को जो पैसे ट्रांसफर किए थे, उसका एक बड़ा हिस्सा या तो कंपनी में लौट आया या फिर उन संस्थाओं में भेज दिया गया, जो कि प्रत्यक्ष या परोक्ष जेनसोल के प्रोमटर्स अनमोल सिंह जग्गी और पुनीत सिंह जग्गी से जुड़े थे.
क्या है जेनसोल घोटाला?
सेबी की अंतरिम जांच रिपोर्ट के अनुसार, जेनसोल ने साल 2021 से 2024 के बीच IREDA और PFC से 978 करोड़ रुपये के टर्म लोन लिए थे. इनमें से 664 करोड़ रुपये का इस्तेमाल 6400 इलैक्ट्रिक गाड़ियों को खरीदने में किया जाना था, जिसे कंपनी बाद में ब्लू स्मार्ट को लीज पर देती.
इसके अलावा, जेनसोल 20 प्रतिशत का अतिरिक्त इक्विटी मार्जिन भी देने को तैयार थी, जिससे इलैक्ट्रिक गाड़ियों की खरीद पर होनेवाला कुल खर्च बढ़कर 830 करोड़ रुपये हो जाता. लेकिन, कंपनी ने फरवरी में शेयर बाजार को भेजी एक जानकारी में बताया कि उसने अब तक सिर्फ 4704 इलैक्ट्रिक गाड़ियां ही खरीदी हैं. इस पर भी उसका खर्च 568 करोड़ रुपये आया है.
ईवी का पैसा रियल एस्टेट में डायवर्ट
सेबी ने अपनी जांच में ये पाया की जग्गी भाइये ने अपने इन पैसों का इस्तेमाल अपने निजी खर्चों के लिए भी किया. साल 2022 में IRDEA से लोन की एक किश्त मिलने के बाद जेनसोल ने पहले अधिकतर पैसों को गो ऑटो को ट्रांसफर किया और फिर गो ऑटो ने उसी पैसों को कैब्रिज नाम की एक कंपनी को ट्रांसफर कर दिया, जिसे सेबी ने जेनसोल से जुड़ी एक संस्था पाया है.
कैब्रिज ने बाद में इसमे से 42.94 करोड़ रुपये यानी करीब 43 करोड़ रुपये को रियल एस्टेट की दिग्गज कंपनी डीएलएफ को ट्रांसफर कर दिए. सेबी ने जब इस पूरे मामले में डीएलएफ से संपर्क किया तब पता चला कि ये रकम गुरुग्राम के द कैमेलियाज नाम से बने डीएलएफ के एक बेहद आलीशान प्रोजेक्ट में अपार्टमेंट खरीदने के लिए चुकाई गई थी. सेबी के अनुसार, ये अपार्टमेंट उस फर्म के नाम पर खरीदा गया, जिसमें जेनसोल के एमडी अनमोल सिंह जग्गी और उनके भाई पार्टनर थे. यानी ईवी के नाम पर मिले लोन का पैसा रियल एस्टेट में डायवर्ट किया गया.
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