Crime Beat Movie Review: आज से जी5 पर क्राइम बीट सीरीज स्ट्रीम होने लगी है. साकिब सलीम, सुधीर मिश्रा और राजेश तैलंग जैसे बड़े नाम जुड़े होने के बावजूद ये सीरीज सिर्फ दिमाग खराब करती है.
Crime Beat Review: सुधीर मिश्रा, ये नाम इस सीरीज से जुड़ा था इसलिए इस खराब सीरीज को बड़ी मुश्किल से पूरा देखा. सोचा अब कुछ होगा, अब कुछ होगा, अब कुछ होगा और हुआ, मेरे साथ टॉर्चर. इस सीरीज में न क्राइम ठीक से दिखा और न कोई बीट है. बस बिन्नी बिन्नी होता रहा और दर्शक चकर घिन्नी बना रहा. ये देखकर लगा कि सुधीर मिश्रा का नाम सिर्फ सीरीज की हाइप बनाने के लिए तो इस्तेमाल नहीं हुआ. वैसे न हाइप बनी और न ढंग की सीरीज.
Crime Beat Movie Review

कैसी है सीरीज- ये सीरीज काफी खराब है. पहले एपिसोड से ही ये बोरिंग लगता है और दूसरे तीसरे तक पहुंचने के लिए बड़ी हिम्मत जुटानी पड़ती है. स्क्रीनप्ले काफी खराब है. एक सीन में क्राइम रिपोर्टर अभिषेक एक घर में झांक रहा होता है और एक क्रिमिनल आ जाता है और जानते हैं वो रिपोर्टर क्या बोलता है- कि मैंने सोचा यहां गरीब बच्चे होंगे तो उन्हें पढ़ा दूं और आप सोचते हैं कि भाई ये हो क्या रहा है. ये सीरीज किसी भी प्वाइंट पर एंटरटेन नहीं करती, बोझिल लगती है, सीरीज क्या दिखाना चाहती है ये शायद मेकर्स को भी नहीं पता और दर्शक भी पता नहीं कर पाएंगे.
कहानी- ये कहानी है क्राइम बीट में काम करने वाले एक जर्नलिस्ट अभिषेक यानी साकिब सलीम की जो किसी एंगल से क्राइम रिपोर्टर नहीं लगते. अभिषेक को खुद को साबित करने का मौका चाहिए. अखबार के एडिटर को फ्रंट पेज हेडलाइन चाहिए. बिन्नी नाम का क्रिमिनल इंडिया आता है और ये क्राइम रिपोर्टर कुछ इन्वेस्टिगेट करते हैं और फिर जो होता है वो समझ में नहीं आता. आपको समझना हो तो जी5 पर ये सीरीज देख लीजिएगा लेकिन अपने रिस्क पर.
एक्टिंग – किसी भी एक्टर की एक्टिंग इंप्रेस नहीं करती क्योंकि कोई किरदार ठीक से लिखा ही नहीं गया. साकिब सलीम अच्छे एक्टर हैं. सिटाडेल हनी बनी में उन्होंने कमाल का किया था, लेकिन यहां वो जर्नलिस्ट नहीं लगते. इस किरदार में वो फिट नहीं होते. सबा आजाद जैसी अपनी पिछली सीरीज में डेंटिस्ट के रोल में लगी थी, जैसी वो पैपराजी वीडियोज में लगती हैं, वैसी ही लगी हैं. राहुल भट जैसे कमाल के एक्टर को बर्बाद कर दिया गया. राजेश तैलंग को भी ठीक से इस्तेमाल नहीं किया गया. साईं ताम्हनकर ने भी काफी खराब काम किया है.
डायरेक्शन- संजीव कौल और सुधीर मिश्रा ने ये सीरीज मिलकर डायरेक्ट की है. सुधीर मिश्रा ने वाकई इसे डायरेक्ट किया है इसपर यकीन नहीं होता. डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले बहुत खराब है. कहीं भी ये सीरीज आपको एंटरटेन नहीं करती, कास्टिंग भी ठीक नहीं है.
कुल मिलाकर ये सीरीज मत ही देखिए.
रेटिंग – 1 स्टार
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Throughout this dissertation, I have taken seriously IndieWeb’s claim to be pursuing self-empowerment and autonomy, and I believe it is fair to extend Dourish’s (2019) charge of nurturing and sustaining human dignity and flourishing as a fair description of IndieWeb’s purpose. This claim suffers when the cultures of so many technical organizations reproduce and even amplify injustice. Change also means that the ideas and concerns of all people need to be a part of the design phase and the auditing of systems, even if this slows down the process. This perspective of design as existing within networks of mediation is a counter to the stance of “design from nowhere,” which “is closely tied to the goal of construing technical systems as commodities that can be stabilized and cut loose from the sites of their production long enough to be exported en masse to the sites of their use” (2002, p.
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