NASA और ISRO के सहयोग से बना NISAR उपग्रह 30 जुलाई 2025 को सफलतापूर्वक लॉन्च हुआ। यह उन्नत SAR तकनीक से भूकंप, बाढ़, ग्लेशियर पिघलने और पर्यावरणीय परिवर्तनों की निगरानी करेगा।
Contents
🗓️ 1. हालिया लॉन्च अपडेट

- 30 जुलाई 2025, GSLV‑F16 के जरिए Satish Dhawan Space Centre (Sriharikota) से NISAR उपग्रह सफलतापूर्वक लॉन्च हुआ — यह पहला मौका था जब GSLV ने Sun‑Synchronous Orbit में payload रखा।
- प्रक्षेपण के लगभग 19 मिनट बाद NISAR ने सफलतापूर्वक SSO (743 कि.मी.) में प्रवेश किया।
🔭 2. मिशन की विशेषताएं और कार्यक्षमता

- NISAR एक dual‑frequency SAR उपग्रह है (L-band from NASA & S-band from ISRO), जो पृथ्वी की सतह में ±1 सेमी की हलचल भी दर्ज कर सकता है। यह हर 12 दिनों में पूरे 242 कि.मी. का क्षेत्र स्कैन करेगा।
- 90 दिनों की commissioning phase के बाद यह वैज्ञानिक डेटा भेजना शुरू करेगा।
🌐 3. वैश्विक महत्व: पर्यावरण, आपदा और भू‑वैज्ञानिक निगरानी

- NISAR का उपयोग भूस्खलन, भूकंप से जुड़ी सतही हलचलों, ग्लेशियर पिघलने, भूमि क्षरण, समुद्री तट और वन संरचनाओं के लगातार निगरानी हेतु किया जाएगा।
- यह उपग्रह मौसम और दिन में अंतर किए बिना काम कर सकता है — इससे flood, volcanoes, earthquake जैसी घटनाओं की समय रहते पहचान संभव होगी।
🏛 4. रणनीतिक साझेदारी: भारत–यूएस वैज्ञानिक सहयोग
- यह पहला hardware collaboration ईंट ISRO और NASA के बीच हुआ; NASA ने L‑band SAR और JPL systems दिए, जबकि ISRO ने S‑band SAR, सैटेलाइट बस और GSLV‑F16 लॉन्च मैकेनिक्स उपलब्ध कराए।
- सांसद जितेंद्र सिंह ने इसे disaster monitoring और प्रतिक्रिया क्षमताओं में “game‑changer” बताया।
📋 Quick Summary – सारांश
तत्व | विवरण |
---|---|
लॉन्च तिथि | 30 जुलाई 2025 |
उपग्रह वजन | ≈ 2,392 कि.ग्रा |
ऑर्बिट | Sun‑synchronous polar orbit, 743 कि.मी. ऊँचाई |
स्कैन आवृत्ति | हर 12 दिनों में पूर्ण सरफेस coverage |
तकनीक | Dual‑band SAR – L‑band (NASA) + S‑band (ISRO) |
प्रमुख उपयोग | भूमिगत परिवर्तन, जलवायु, आपदा रिस्पांस, экोसिस्टम mapping |
वैश्विक महत्व | Earth Science, Climate Research, Disaster Risk Reduction |
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