RSS प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में कहा कि “75 वर्ष की आयु पार होने पर नेताओं को पीछे हट जाना चाहिए”
उनकी यह टिप्पणी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगामी 75वें जन्मदिन (सितंबर 2025) के दृष्टिगत बहुत महत्व रखती है, जिससे राजनीति में वरिष्ठ नेताओं की भूमिका पुनः चर्चा में आ गई है।
🗣️ राजनीतिक प्रतिक्रिया और बहस
- कांग्रेस ने इस बयान को मोदी पर इशारा बताया। जयराम रमेश ने कहा, “Poor award‑jeevi Prime Minister… reminded by the RSS chief… he too will turn 75”
वहीं पवन खेड़ा ने व्यंग्य किया, “अब दोनों बैग उठा लें और आपस में मार्गदर्शन करें” । - शिवसेना (UBT) ने भी सवाल किया कि क्या यह नियम खुद पीएम मोदी पर भी लागू होगा, जबकि भाजपा और अमित शाह ने इस पर पुर्नविचार और सफ़ाई जारी करते हुए कहा कि मोदी 2029 तक ही नेतृत्व संभालेंगे
📌 भागवत के विचार: उम्र और नेतृत्व
मुरोपंत पिंगळे के हवाले से भागवत ने कहा कि एक सम्मान के रूप में दी जाने वाली शॉल 75 पार करने के बाद सेवा से अलग हो जाने की निशानी होती है ।
🕊️ समावेश और सामाजिक संदेश
इसके अतिरिक्त, उन्होंने पुस्तक विमोचन में यह भी कहा कि हर श्रद्धालु-कार्यकर्ता का योगदान हिंदू राष्ट्र निर्माण में यादृच्छिक रूप से हो रहा है।
भागवत ने अक्षुण्ण समाज और चैन की जीवनशैली पर भी ज़ोर दिया—जैसे एक स्वचालित प्रणाली की तरह RSS का कार्य होना चाहिए ।
🔍 विश्लेषण: इसकी राजनीतिक और सामाजिक महत्ता
- यह बयान बीजेपी और RSS में नेतृत्व बदलाव के संकेत भी दे सकता है।
- मोदी का भी जल्द 75 वर्ष का होना इसे सार्वजनिक विमर्श में ला रहा है।
- विरोधी दल इसे मॉडरेशन और नेतृत्व हल्कापन से जोड़कर राजनीतिक बिंदुओं का इस्तेमाल कर सकते हैं।
✅ निष्कर्ष
मोहन् भागवत का यह बयान सिर्फ उम्र पाने की सीमा नहीं, बल्कि नेतृत्व हस्तांतरण, देश की साझा जिम्मेदारियों और संवेदनशील राजनीति की दिशा में सोच को दर्शाता है।
इससे सबसे बड़ी बहस उठती है: जब नेता बुजुर्ग हो जाते हैं, तो नेतृत्व को क्या आकार देना चाहिए?
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