जन्माष्टमी, भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के रूप में पूरे भारत और विश्व के अनेक हिस्सों में धूमधाम से मनाई जाती है। यह पर्व भक्ति, प्रेम और उल्लास का प्रतीक है, जो हर वर्ष भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। देश-विदेश में जन्माष्टमी का भव्य आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी एकता और भाईचारे का संदेश देता है।
भारत में जन्माष्टमी का आयोजन

भारत के लगभग हर राज्य में जन्माष्टमी को विभिन्न विधि-विधान से मनाया जाता है। मथुरा और वृंदावन जैसे पवित्र स्थान तो इस त्योहार के केंद्र हैं, जहां हजारों श्रद्धालु भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर पहुंचकर भव्य पूजा-अर्चना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लेते हैं।
- मथुरा-वृंदावन: यहाँ की जन्माष्टमी सबसे प्रसिद्ध है। मंदिरों में रात 12 बजे श्रीकृष्ण के जन्म के क्षण को विशेष पूजा के साथ मनाया जाता है। भव्य झांकियाँ, लोकनृत्य, भजन-कीर्तन, और दही हांडी जैसे कार्यक्रम इस पर्व को और भी रंगीन बना देते हैं।
- महाराष्ट्र में दही हांडी: यहाँ युवा समूह एक-दूसरे के कंधों पर चढ़कर दही से भरी हांडी तोड़ने का खेल खेलते हैं, जो टीम भावना और उत्साह का परिचायक है।
- दक्षिण भारत में: कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में मंदिरों और घरों में कृष्ण लीला मंचित की जाती है। रंगीन रथयात्राएँ और झांकियाँ देखने लायक होती हैं।
- उत्तर भारत में: दिल्ली, पंजाब, राजस्थान जैसे राज्यों में मंदिरों में भजन-कीर्तन और कथाएं सुनाई जाती हैं। घरों में भी पारंपरिक रूप से व्रत रखा जाता है।
विदेशों में जन्माष्टमी का उत्सव
भारत से बाहर रहने वाले हिंदू समुदाय भी जन्माष्टमी को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, और खाड़ी देशों में मंदिरों, सामुदायिक केंद्रों और घरों में जन्माष्टमी की रौनक दिखाई देती है।
- अमेरिका और कनाडा: यहाँ बड़े पैमाने पर मंदिरों में कृष्ण जन्मोत्सव का आयोजन होता है। सांस्कृतिक कार्यक्रम, संगीत और नृत्य के माध्यम से भारतीय परंपरा जीवित रखी जाती है।
- यूरोप: ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों में भी हिंदू समुदाय भजन संध्या, कथाकथन और मखान-मिठाई वितरण करते हैं।
- खाड़ी देश: UAE, सऊदी अरब, कतर आदि देशों में जहां बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी हैं, जन्माष्टमी की शोभा देखते ही बनती है। यहाँ मंदिरों में श्रद्धालु भक्तिपूर्ण माहौल बनाते हैं।
जन्माष्टमी का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
जन्माष्टमी न केवल भगवान कृष्ण के जीवन और शिक्षाओं को याद करने का अवसर है, बल्कि यह सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं, और एक-दूसरे के साथ मिठाईयां बांटते हैं। बच्चों के लिए कृष्ण लीला का मंचन होता है, जिससे वे अपनी संस्कृति से जुड़ाव महसूस करते हैं।
निष्कर्ष

जन्माष्टमी का भव्य आयोजन भारत और विदेशों में भारतीय संस्कृति की समृद्धि और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। यह त्योहार प्रेम, भक्ति और आनंद का संदेश फैलाता है और हमारे अंदर एकता और सद्भाव की भावना को मजबूत करता है। चाहे देश हो या विदेश, जन्माष्टमी का उत्सव सभी के दिलों में कृष्ण भक्ति का संचार करता है।
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