2026 तक ब्रिक्स (BRICS) देशों की करेंसी को लेकर अंतरराष्ट्रीय बहस और तेज़ हो रही है। ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन और साउथ अफ्रीका मिलकर एक साझा मुद्रा लाने की दिशा में काम कर रहे हैं, जो भविष्य में डॉलर (USD) को चुनौती दे सकती है। सवाल है – इसका भारतीय निवेशकों पर क्या असर होगा?
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1. ब्रिक्स करेंसी का उद्देश्य
- डॉलर पर निर्भरता कम करना।
- इंटरनेशनल ट्रेड में आसान भुगतान।
- तेल और गैस जैसे कमोडिटीज़ का ट्रेड डॉलर के बजाय ब्रिक्स करेंसी में करना।
- ब्रिक्स देशों के बीच मजबूत आर्थिक सहयोग बढ़ाना।
2. भारतीय निवेशकों के लिए संभावित फायदे
- डॉलर एक्सपोज़र कम होगा → अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की वोलैटिलिटी का असर घटेगा।
- रुपया मजबूत हो सकता है → विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव कम होगा।
- गोल्ड और क्रिप्टो पर असर → डॉलर के कमजोर होने पर वैकल्पिक एसेट्स में मांग बढ़ेगी।
- FDI और ट्रेड डाइवर्सिफिकेशन → भारतीय कंपनियों को नए देशों से निवेश आसान होगा।
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3. संभावित चुनौतियाँ
- ब्रिक्स करेंसी की स्थिरता अभी अनिश्चित है।
- डॉलर अभी भी रिज़र्व करेंसी है, इसलिए तुरंत बड़ा बदलाव संभव नहीं।
- निवेशकों को रिस्क मैनेजमेंट पर ध्यान देना होगा – खासकर विदेशी पोर्टफोलियो में।
- ट्रांज़िशन पीरियड में करेंसी वोलैटिलिटी बढ़ सकती है।
4. 2026 तक निवेश रणनीति
- डायवर्सिफिकेशन ज़रूरी → सिर्फ डॉलर आधारित एसेट्स पर निर्भर न रहें।
- गोल्ड और डिजिटल एसेट्स जैसे विकल्प रखें।
- इंटरनेशनल फंड्स में निवेश करते समय करेंसी जोखिम को समझें।
- सरकारी पॉलिसीज़ पर नज़र रखें – RBI और वित्त मंत्रालय की गाइडलाइंस निवेशकों को दिशा देंगी।
निष्कर्ष
2026 तक ब्रिक्स करेंसी डॉलर का विकल्प बन सकती है, लेकिन भारतीय निवेशकों को इसे एक लंबी अवधि का बदलाव मानना चाहिए।
अभी डॉलर पूरी दुनिया की रिज़र्व करेंसी है, इसलिए तुरंत बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं।
फिर भी, यह ट्रेंड भारतीय अर्थव्यवस्था और निवेशकों के लिए नए अवसर और जोखिम दोनों लेकर आएगा।
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