AMRUT 2.0 अब तक 18.1 लाख नए टेप कनेक्शन, ₹5,000 करोड़ के नए प्रोजेक्ट, बिहार के 250 करोड़ जल-परियोजनाएँ और दिल्ली में ₹800 करोड़ की सीवेज पहल के साथ शहरी जीवन को मजबूत बना रहा है।
नवीनतम अपडेट्स
1. योजना का विस्तार और वित्तीय आधार
- AMRUT 2.0 अब करीब 4,900 शहरी क्षेत्रों तक अपनी पहुँच बना चुका है। इसकी कुल योजना लागत ₹2,77,000 करोड़ है, जिसमें से केंद्र की हिस्सेदारी ₹76,760 करोड़ है।
- हाल ही में ₹5,000 करोड़ के नए प्रोजेक्ट्स शुरू हुए हैं, जो जल आपूर्ति, सीवेज ट्रीटमेंट, जल निकायों और पार्कों के संवर्धन पर केंद्रित हैं।
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2. दिल्ली में बड़ी जल और सीवेज परियोजनाएँ
- केंद्र ने अवैध कॉलोनियों के लिए ₹800 करोड़ मंजूर किए, जिनमें इस्पात 2.5 लाख नए सीवेज कनेक्शन और 50 मिलियन लीटर रोज़ाना रीसाइकलिंग शामिल है।
3. बिहार में जल नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर
- दरभंगा और औरंगाबाद में अब ₹250 करोड़ से अधिक निवेश करके पीने के पानी की समस्या दूर की जा रही है।
- दरभंगा में 211 किमी नेटवर्क से 24,183 घरों में पानी पहुंचाया जाएगा, जबकि औरंगाबाद में 14,225 नए कनेक्शन स्थापित होंगे।
4. बेंगलुरु में जल संरक्षण परियोजनाएं
- SAM 2.0 (Shallow Aquifer Management) योजना का ₹45 लाख का प्रोजेक्ट, जो वर्षा जल संचयन हेतु था, ठप पड़ा हुआ है क्योंकि ठेकेदार नहीं मिल रहे हैं। यह परियोजना मानसून सीजन में Groundwater Recharge के लिए महत्वपूर्ण थी।
5. आंखों देखी प्रगति और इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास
- दिसंबर 2024 तक AMRUT 1.0 के तहत 1,390 प्रोजेक्ट्स शुरू हो चुके हैं, जिनमें से ₹411 अरब का कार्य पूरा हो चुका है।
- AMRUT 2.0 में 3,596 जल आपूर्ति और 3,078 जल निकाय पुनर्जीवित प्रोजेक्ट्स मंजूर किए गए हैं।
सारांश तालिका
क्षेत्र | ताज़ा स्थिति और पहुँच |
---|---|
विस्तार | 4,900 शहरों तक AMRUT 2.0 पहुँचा |
वित्तीय शुरूआत | ₹5,000 करोड़ नए प्रोजेक्ट; कुल ₹2.77 लाख करोड़ बजट |
दिल्ली | ₹800 करोड़ सीवेज सुधार; 2.5 लाख नए कनेक्शन |
बिहार | ₹250 करोड़ जल नेटवर्क प्रोजेक्ट्स |
जल संरक्षण (बेंगलुरु) | SAM 2.0 ठप पड़ा – ठेकेदार की कमी |
परियोजना प्रगति | 1,390 प्रोजेक्ट्स शुरू, ₹411 अरब कार्य पूरा |
निष्कर्ष
AMRUT 2.0 शहरी भारत में जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने का एक सशक्त माध्यम है।
यह योजना जल, सीवेज, हरियाली और जल संरक्षण जैसे क्षेत्रों में काम कर, लगातार टारगेट्स हासिल कर रही है।
हालाँकि, बेंगलुरु जैसी जगहों पर देरी यह दिखाती है कि कार्यान्वयन में चुनौतियाँ बनी हैं, जिन्हें समय रहते दूर करना जरूरी है।
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