“Janaki v/s State of Kerala” एक बहुचर्चित मलयालम कोर्टरूम ड्रामा फिल्म है, जिसमें न्याय, संवेदना और रचनात्मकता के अधिकारों को लेकर देशव्यापी बहस छिड़ गई। निर्देशक प्रवीन नारायणन की इस फिल्म में अनुपमा परमेश्वरन और सुरेश गोपी मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म ने सेंसर बोर्ड और केरल हाईकोर्ट तक का लंबा सफर तय किया, जिसके बाद अब यह 17 जुलाई 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज़ होने जा रही है।
🎭 फिल्म की कहानी क्या है?
फिल्म की कहानी एक बलात्कार पीड़िता जनाकी विद्याधरण पर केंद्रित है, जो न्याय के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाती है। उसका मुक़ाबला होता है एक कड़े और अनुभवी वकील से, जिसकी भूमिका में सुरेश गोपी नज़र आते हैं। फिल्म एक संवेदनशील विषय को बेहद मजबूती से प्रस्तुत करती है, और यही कारण है कि इसे लेकर विवाद भी पैदा हुआ।
❌ विवाद: जनाकी नाम पर आपत्ति क्यों?
CBFC (Central Board of Film Certification) ने फिल्म के शीर्षक “Janaki v/s State of Kerala” और पात्र के नाम “Janaki” को लेकर आपत्ति जताई।
बोर्ड का मानना था कि “जनाकी” नाम देवी सीता से जुड़ा है और फिल्म में उस नाम को एक बलात्कार पीड़िता के रूप में दिखाना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है।
CBFC को यह भी चिंता थी कि जनाकी के पक्ष में केस लड़ रहा वकील एक मुस्लिम किरदार है, जिससे सांप्रदायिक तनाव भड़क सकता है।
⚖️ केरल हाईकोर्ट में केस पहुँचा
निर्माताओं ने CBFC के फैसले को चुनौती दी और मामला केरल हाईकोर्ट पहुंचा। न्यायमूर्ति एन. नागरेश ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि:
“भारत में हजारों महिलाओं का नाम जनाकी है। क्या अब सभी को नाम बदलना होगा?”
कोर्ट ने CBFC को फटकार लगाई कि वो संविधान द्वारा प्रदत्त रचनात्मक आज़ादी में दखल न दे।
🛠️ सेंसर बोर्ड के साथ समझौता

बोर्ड ने पहले 96 कट्स की मांग की थी, लेकिन बाद में समझौते के तहत सिर्फ 2 बदलाव किए गए:
- टाइटल को “Janaki v/s State of Kerala” में “v/s” स्टाइल से रखा गया।
- एक कोर्टरूम दृश्य में “Janaki” नाम को म्यूट किया गया।
इसके बाद फिल्म को U/A सर्टिफिकेट मिल गया।
📅 रिलीज की तारीख और कोर्ट का अंतिम फैसला
11 जुलाई 2025 को CBFC ने फिल्म को हरी झंडी दी और
16 जुलाई 2025 को केरल हाईकोर्ट ने केस को आधिकारिक रूप से बंद कर दिया।
अब फिल्म 17 जुलाई 2025 को देशभर में रिलीज़ के लिए तैयार है।
🎯 यह विवाद क्यों महत्वपूर्ण है?
यह मामला सिर्फ एक फिल्म या नाम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे रचनात्मक स्वतंत्रता, धार्मिक संवेदनशीलता और कानूनी सीमाओं के बीच संतुलन बनाना जरूरी है।
फिल्म इंडस्ट्री के संगठनों जैसे FEFKA और प्रोड्यूसर्स यूनियन ने भी CBFC की आलोचना की और निर्माताओं के समर्थन में खड़े हुए।
📝 निष्कर्ष
“Janaki v/s State of Kerala” सिर्फ एक कोर्टरूम ड्रामा नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा में आज़ादी बनाम सेंसरशिप की लड़ाई का प्रतीक बन गई है। इस फिल्म का इंतज़ार अब सिर्फ कलात्मक कारणों से नहीं, बल्कि इसकी सामाजिक और वैचारिक अहमियत के लिए भी किया जा रहा है।
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