Guntur Kaaram Review: गुंटूर कारम
कलाकार: महेश बाबू , श्रीलीला , मीनाक्षी चौधरी , जगपति बाबू , राम्या कृष्णन , प्रकाश राज , जयराम , सुनील और मुरली शर्मा व अन्य
निर्माता: एस. राधा कृष्ण
रिलीज: 12 जनवरी 2024
लेखक: त्रिविक्रम श्रीनिवास
निर्देशक: त्रिविक्रम श्रीनिवास
रेटिंग: 2/5
साल 2022 में महेश बाबू की तेलुगू फिल्म ‘सरकारु वारी पाटा’ रिलीज हुई थी। वहीं, फिल्म के लेखक-निर्देशक त्रिविक्रम श्रीनिवास के साथ महेश बाबू ने 14 साल बाद काम किया है। साल 2010 में रिलीज फिल्म ‘खलेजा’ में महेश बाबू ने निर्देशक त्रिविक्रम श्रीनिवास के साथ काम किया था। इस फिल्म में निर्देशक के साथ महेश बाबू की जो केमिस्ट्री देखने को मिली थी, वैसी केमिस्ट्री फिल्म ‘ ‘गुंटूर कारम’ में देखने को नहीं मिल रही है। तेलुगू सिनेमा के सुपरस्टार महेश बाबू की बीते साल एक भी फिल्म रिलीज नहीं हुई। नए साल में उनकी फिल्म ‘गुंटूर कारम’ सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी हैं। लेकिन जिस तरह से इस फिल्म के रिलीज से पहले दर्शकों में उत्साह देखा गया था, फिल्म की रिलीज के बाद के बाद वैसा उत्साह दर्शकों में नहीं देखा जा रहा है।
फिल्म ‘गुंटूर कारम’ की शुरुआत फ्लैशबैक से होती है। वीरा वेंकट रमन के पिता सत्यम को एक हत्या के आरोप में जेल हो जाती है और उसकी मां वसुंधरा उसे छोड़कर हैदराबाद आ जाती है। वीरा वेंकट रमन का बचपन अपने पैतृक गांव में बीतता है और वह बड़ा होकर मिर्च के कारोबार में शामिल हो चुका है। इधर हैदराबाद आने के बाद वसुंधरा अपने पिता वेंकट स्वामी की सलाह पर राजनीति में प्रवेश करती है और कानून मंत्री बन जाती है। सत्यम अपनी सजा काट चुका है, जेल से बाहर आने के बाद वह किसी से भी मिलना पसंद नहीं करता। वसुंधरा का परिवार एक समझौते पर वीरा वेंकट रमन का हस्ताक्षर चाहता है, जिससे उसकी मां के साथ सभी संबंध खत्म हो जाते हैं। इस कदम का उद्देश्य उनसे कानूनी उत्तराधिकारी का दर्जा छीनना है, जिससे वसुंधरा की दूसरी शादी से हुए बेटे को राजनीतिक विरासत में मिल सके।
फिल्म देखने के बाद ऐसा लगता है कि महेश बाबू को खुश करने के चक्कर में त्रिविक्रम श्रीनिवास ने कहानी का पूरा फोकस उनके ही किरदार पर रखा, यह सबसे बड़ी निर्देशक की भूल नजर आती है। फिल्म की कमजोर कथा और पटकथा ने पूरा खेल बिगाड़ दिया। फिल्म के निर्देशक त्रिविक्रम श्रीनिवास ने ही फिल्म की कहानी भी लिखी है। मां बेटे के बीच जो भावनात्मक दृश्य होने चाहिए वह निखर कर नहीं आए। जिसकी वजह से दर्शको का इस फिल्म से भावनात्मक तौर पर जुड़ाव नहीं हो पाया। फिल्म की कहानी जैसे -जैसे आगे बढ़ती है, अपना असर खोने लगती है। साउथ की फिल्मों की खासियत यही होती है कि एक्शन दृश्यों पर खूब मेहनत करते हैं, अगर फिल्म की कथा और पटकथा पर भी उतनी ही मेहनत की गई होती तो यह एक बेहतर फिल्म बन सकती थी।
इस फिल्म में महेश बाबू ने वीरा वेंकट रमन की भूमिका निभाई है। फिल्म में उनका एक्शन अवतार तो ठीक है क्योंकि उसमें बॉडी डबल से काम चल जाता है। लेकिन जहां अभिनय की बात आती है, वहां महेश बाबू हर सीन में फेल हैं। फिल्म में श्रीलीला के साथ भी उनकी जुगलबंदी उभर कर नहीं आती है। वेंकट रमन की मां वसुंधरा की भूमिका में राम्या कृष्णन अपने अभिनय से अच्छा प्रभाव छोड़ती हैं, लेकिन फिल्म में उनका परफॉर्मेंस देखकर लगता है कि अभी भी वह ‘बाहुबली’ की शिवगामी देवी की छवि से बाहर नहीं निकल पाई हैं। श्रीलीला के लिए इस फिल्म में करने के लिए कुछ खास नहीं रहा।
वीरा वेंकट रमन के पिता सत्यम की भूमिका में जयराम, मार्क्स की भूमिका में जगपति बाबू, वेंकट स्वामी की भूमिका में प्रकाश राज, श्रीलीला के पिता पनी की भूमिका में मुरली शर्मा, मार्क्स के भाई लेनिन की भूमिका में सुनील का परफॉर्मेंस प्रभावशाली रहा है। इन दिग्गज सितारों से और भी बेहतर काम निकला जा सकता था, लेकिन फिल्म के लेखक-निर्देशक त्रिविक्रम श्रीनिवास की यहां भी बहुत बड़ी चूक नजर आती है। मनोज परमहंस की सिनेमैटोग्राफी संतोषजनक है। थमन एस का संगीत शोर शराबे से भरा पड़ा है। फिल्म के एडिटर नवीन नूली के पास अनावश्यक दृश्यों पर कैंची चलाने की पूरी आजादी थी, लेकिन इस मामले में वह भी चूक गए।
तस्वीर: महेश बाबू सुदर्शन थिएटर में प्रशंसकों के साथ ‘गुंटूर करम’ देखते हुए
Mahesh Babu at Sudarshan Theatre 🔥🔥🔥 #GunturKaaram pic.twitter.com/f1DlTd47Mh
— 𝙸𝚝𝚊𝚌𝚑𝚒❟❛❟ (@itachiistan1) January 12, 2024